War of 1962: भारत (India) और अमेरिका (America) भले ही आज बेहद करीब नजर आ रहे हों लेकिन कुछ दशक पहले दोनों ही देश को कभी मित्र देश नहीं माना गया था। दोनों के बीच अतीत में दोस्ती के कम ही दास्तां हैं। भारत ने अपनी आजादी के बाद से ही गुट-निरपेक्षता (Non-Alignment) की नीति कायम रखते हुए अमेरिका से दूरी बना रखी थी। लेकिन जब 1962 में भारत और चीन (China) के बीच जंग हुई तब अपनी खुद की चुनौतियों के बाद भी अमेरिका ने भारत का भरपूर साथ दिया था। इस साथ की खबर के साथ ही चीन के कदम मानों रूक से गए थे।
बात अक्टूबर और नवंबर 1962 की है जब चीनी हमले के दौरान भारत को सैन्य मदद की दरकार थी तब अमेरिका ने उदार होकर भारत के लिए अपना हाथ बढ़ाया था। अमेरिका के राष्ट्रपति जॉन एफ. केनेडी (John f. Kennedy) तब क्यूबा संकट (Cuban Crisis) को लेकर चुनौती का दौर देख रहे थे। लिहाजा उन्होंने अमेरिकी राजदूत प्रोफेसर जॉन कीनिथ गैलब्रेथ (John Kenneth Galbraith) को हालात संभालने की जिम्मेदारी दी। भारत की मदद के लिए फिलीपींस (Philippines) में मौजूद अमेरिकी एयरफोर्स को अलर्ट कर दिया गया था। इसके साथ ही, अमेरिका ने चीन को भी संदेश पहुंचा दिया कि वह भारत की मदद करने आ रहा है।

बंगाल की खाड़ी में घेरने की रणनीति
1962 की युद्ध में भारत पूरी दुनिया से अलग-थलग पड़ गया था। इसी दौर में अमेरिका ने भारत की मददगार की भूमिका निभाई थी। अमेरिका ने चीन के संभावित हमले को रोकने के लिए बंगाल की खाड़ी में यूएसएस किटी हॉक एयरक्राफ्ट (USS Kitty Hawk (CV-63)) कैरियर भेजने की तैयारी भी कर ली थी। 18 नवंबर 1962 को जब चीनी सेना का भारत की तरफ ज्यादा आगे बढ़ने की खबर आई तो भारतीय मायूस हो गए थे। तब भारत के दोस्त कहे जाने वाले देशों ने भी भारत का साथ छोड़ दिया था।
रूसी अखबर ने भारत को जिम्मेदार ठहराया
25 अक्टूबर 1962 को जब सोवियत रूस (Soviet Russia) का अमेरिका के साथ युद्ध बिल्कुल तय नजर आ रहा था तो सोवियत के अखबार ने फ्रंट पेज पर एक आर्टिकल छापा था। इस आर्टिकल के जरिए 1962 के युद्ध के लिए पूरी तरह से भारत को कसूरवार ठहराया। आर्टिकल में भारत और चीन के बीच खींची गई मैकमोहन रेखा को कुख्यात और ब्रिटिश औपनिवेश का नतीजा करार देते हुए इसे कानूनी तौर पर अमान्य घोषित किया था। रूसी अखबार ने भारत पर औपनिवेशिक ताकतों के इशारे पर चलने का आरोप लगाया गया और उसे लड़ाई का रिंगमास्टर करार दिया। सोवियत यूनियन के इस रुख के उलट अमेरिका के तत्कालीन राष्ट्रपति केनेडी (John f. Kennedy) का रवैया उदार और सहयोगपूर्ण था।

अमेरिकन सेना ने की सैन्य मदद
तब अमेरिकन एयरक्राफ्ट नियमित तौर पर सैन्य मदद लेकर दिल्ली आने लगे थे और उन पर इंडो-तिब्बत सीमा (Indo-Tibet border) के फोटो भी होते थे। भारत को इन एरियल फोटोग्राफ (Aerial photograph) से काफी मदद मिलती थी क्योंकि उस वक्त भारत के पास संघर्ष वाले इलाकों के नक्शे नहीं थे। अमेरिकी विदेश मंत्रालय के तत्कालीन सहायक सचिव रोजर हिल्समैन (Roger hilsman) खुद सैन्य मदद को भारत पहुंचा रहे थे। रोजर को दूसरे विश्व युद्ध के दौरान बर्मा कैंपेन का भी अनुभव हासिल था।

चीन ने किया एकतरफा सीजफायर का ऐलान
21 नवंबर 1962 को चीन ने एकतरफा सीजफायर (Ceasefire) का ऐलान कर दिया और कहा कि वह अरुणाचल प्रदेश (Arunachal Pradesh) के कब्जे वाले इलाके से अपनी सेना को पीछे हटा रहा है। हो सकता है कि चीन को सर्दियों में पहाड़ी इलाके में बने रहने में दिक्कतों का सामना करना पड़ रहा हो लेकिन विश्लेषकों का मानना है कि अमेरिका के हस्तक्षेप की वजह से भी चीन ने पीछे हटने का फैसला किया। यही नहीं, 62 में पाकिस्तान को भारत के खिलाफ किसी हमले में शामिल होने से रोकने में भी अमेरिका ने अहम भूमिका निभाई थी।
भारत को अमेरिकी वायुसेना की मदद
भारत को अमेरिकी वायुसेना की मदद भेजकर भारतीय प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू (Jawahar Lal Nehru) को आश्वस्त किया। यूएस नेवी ने बंगाल की खाड़ी में एक लड़ाकू कैरियर भी भेजा जिससे पूरी दुनिया को ये संदेश चला गया कि अमेरिका भारत के साथ है।

ब्रूस रिडेल ने अपनी किताब में लिखा
John F. Kennedy’s Forgotten Crisis: Tibet, CIA & Sino-India War किताब में
सीआईए के पूर्व अधिकारी ब्रूस रिडेल (Bruce Riedel) ने लिखा है कि
संकट के चरम पर पहुंचने के दौरान नेहरू ने केनेडी से 350 अमेरिकी लड़ाकू एयरक्राफ्ट भेजने का अनुरोध किया था।
हालांकि, केनेडी को इसका जवाब देने की जरूरत ही नहीं पड़ी क्योंकि चीनी शासक माओ ने
एकतरफा सीजफायर का ऐलान कर दिया और उत्तर-पूर्व भारत से अपनी सेना को पीछे खींच लिया।
नेहरू ने भी चीनी हमले को रोकने के लिए केनेडी को क्रेडिट दिया था।

ब्रूस के मुताबिक, भारत चीन के हाथों तेजी से अपनी जमीन खो रहा था और
भारतीय सैनिक अपनी जान गंवा रहे थे।
नेहरू ने नवंबर 1962 में केनेडी को एक खत लिखकर चीन को रोकने के लिए
एयर ट्रांसपोर्ट और जेट फाइटर्स की जरूरत बताई थी।
नेहरू ने इसके तुरंत बाद एक और खत भी लिखा था।
इस खत को अमेरिका में तत्कालीन भारतीय राजदूत बी. के. नेहरू ने अपने हाथों से केनेडी को सौंपा था।
अमेरिकी अधिकारी के मुताबिक,
भारत ने अमेरिका से चीनी सेना को हराने के लिए हवाई युद्ध में भी शामिल होने की मांग की थी।

नेहरू ने इन खत में बॉम्बर्स की भी मांग की थी और साथ ही आश्वासन दिया था कि
इनका इस्तेमाल पाकिस्तान के खिलाफ नहीं किया जाएगा
बल्कि चीन के खिलाफ आत्मरक्षा में इनका इस्तेमाल होगा।
ब्रूस के मुताबिक, केनेडी ने इसके बाद अपने प्रशासन को जो निर्देश दिए थे,
उनसे ऐसा लग रहा था कि वह युद्ध की तैयारी कर रहे हैं।
हालांकि, अमेरिका के कोई कदम उठाने से पहले ही चीन ने युद्ध विराम का ऐलान कर दिया।